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रबीन्द्रनाथ ठाकुर(टैगोर) एक विश्वख्याति
प्राप्त कवि,दार्शनिक,चित्रकार,उपन्यासकार,नाट
ककार,संगीतकार,साहित्यकार थे।इन्हे आयुर्वेद
का भी ज्ञान था। तो आइए अब हम इस महान
बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व के जीवन को विस्तार से जाने।
1.जन्म और प्रारंभिक जीवन
रबीन्द्रनाथ टैगोर जी का जन्म कलकत्ता(वर्तमान
देवेन्द्रनाथ टैगोर एक धर्म सुधारक थे और
2.अन्य नाम
रबीन्द्रनाथ टैगोर जी को अन्य नाम से भी जाना
3.उपलब्धियां
रबीन्द्रनाथ टैगोर को बचपन से ही कहानियों
4.अन्य महत्वपूर्ण कार्य
16 अक्टूबर 1905 को रबीन्द्रनाथ टैगोर के नेतृत्व मे रक्षा बंधन का उत्सव मनाया गया जिसके कारण बंग-भंग आन्दोलन का मार्ग खुला,इसी आन्दोलन ने भारत मे स्वदेशी आंदोलन का सूत्रपात किया।
अन्त में, चंद महत्वपुर्ण शब्द
प्रिय पाठक ,इस वर्ष 7 मई 2020 को
1.जन्म और प्रारंभिक जीवन
रबीन्द्रनाथ टैगोर जी का जन्म कलकत्ता(वर्तमान
नाम-कोलकाता) के जोड़ासाँको ठाकुरबाड़ी(भवन)
मे 7 मई 1861 ई॰ मे हुआ। इनके पिता का नाम
देवेन्द्रनाथ टैगोर और माता का नाम शारदा देवी है।
देवेन्द्रनाथ टैगोर एक धर्म सुधारक थे और
तत्वबोधिनी सभा के संस्थापक थे जो आगे चलकर ब्रह्मसमाज मे मिल गया।
रबीन्द्रनाथ के 14 वर्ष की छोटी सी उम्र मे
उनकी माता का देहांत सन् 1875 ई॰ मे हो गया
था इसलिए बाल्यकाल नौकर - चाकर की देख रेख मे बीता।
रबीन्द्रनाथ टैगोर की प्रारंभिक शिक्षा 'सेंट जेवियर्स स्कूल' से शुरू हुई थी।ये अपनी पहली कविता महज़ 8 वर्ष की आयु में लिखे थे।
रबीन्द्रनाथ टैगोर की प्रारंभिक शिक्षा 'सेंट जेवियर्स स्कूल' से शुरू हुई थी।ये अपनी पहली कविता महज़ 8 वर्ष की आयु में लिखे थे।
16 वर्ष की आयु में कहानी 'भिखारिनी' लिखे।फिर वे मात्र 20 वर्ष की आयु में एक नाटक 'बाल्मिकी प्रतिभा' लिखे है।
2.अन्य नाम
रबीन्द्रनाथ टैगोर जी को अन्य नाम से भी जाना
जाता है।इनके अन्य नाम इस प्रकार हैं-भानुसींह ठाकुर,गुरुदेव,कविगुरु,विश्वकाव्य।
3.उपलब्धियां
रबीन्द्रनाथ टैगोर को बचपन से ही कहानियों
और साहित्यों को पढ़ने और लिखने की ओर रुझान था।
परंतु इनके पिता देवेन्द्रनाथ ठाकुर रबीन्द्र को
बैरिस्टर(वकील) बनाना चाहते थे। इसलिए उन्होने
1878 ई॰ मे रबीन्द्र को इंग्लैंड वकालत की पढ़ाई
करने के लीये भेज दिये।किन्तु रबीन्द्र का बैरिस्टर
की तरफ कम रुचि था इसलिए 1880 ई॰ मे बिना
वकालत के डिग्री हासिल किए ही स्वदेश लौट आए।
रबीन्द्रनाथ टैगोर को बाल्यकाल
से ही कविताएं और कहानियां लिखने में रुचि थी
और इसिलिए इंग्लैंड मे ये बहोत से
साहित्यकारो की पुस्तकें पढ़ते रहते थे।वे इंग्लैंड
मे अनेक साहित्यकारों और कवियों से भी मिलते रहते थे।
इन्हे प्रकृति से भी काफी लगाव था।
रबीन्द्रनाथ जी ने प्रमुख कृतियां " गीतांजलि,गीताली,गीतिमाल्या,शिशु,शिशु
भोलानाथ,कणिका,क्षणिका,खेया,कथा ओ
कहानी "आदि की रचना की है। इन्होने लगभग
2230 गीतों की रचना की है।
सन् 1883 ई॰ मे रबीन्द्र जी का
सन् 1883 ई॰ मे रबीन्द्र जी का
विवाह मृणालिनी देवी से हुआ। 1890 ई॰ मे
रबीन्द्र जी ने प्रसिद्ध नाटक 'बिसर्जन' लिखा।
रबीन्द्रनाथ टैगोर की अदभुत काव्य रचना 'गीतांजलि' 1910 ई॰ मे प्रकाशित हुई
थी।उसके बाद उन्हे 'गीतांजलि' के लिये सन् 1913 ई॰ मे 'नोबेल पुरस्कार ' दिया गया। नोबेल पुरस्कार पाने वाले वे पहले गैर-यूरोपीय थे।
इनकी अन्य प्रसिद्ध रचनाओं मे "गौरा,काबुलीवाला,मास्टर साहब,पोस्ट मास्टर"
आज भी लोकप्रिय कहानियां है।
रबीन्द्रनाथ टैगोर न सिर्फ भारत के राष्ट्रगान 'जन-गण-मन' बल्कि बांंग्लादेेेश के राष्ट्रगान 'आमार सोनार बांग्ला' के लिये भी प्रसिद्ध हैं।
इन्होने महात्मा गाँधी को 'महात्मा' की उपाधि दी थी।
4.अन्य महत्वपूर्ण कार्य
16 अक्टूबर 1905 को रबीन्द्रनाथ टैगोर के नेतृत्व मे रक्षा बंधन का उत्सव मनाया गया जिसके कारण बंग-भंग आन्दोलन का मार्ग खुला,इसी आन्दोलन ने भारत मे स्वदेशी आंदोलन का सूत्रपात किया।
इनकी अद्भुत रचनाओं के लिये
सन् 1915 ई॰ मे ब्रिटीश सरकार के राजा जार्ज
पंचम ने नाइटहुड की उपाधि दी ।किन्तु 13 अप्रैल 1919 मे जालियाँवाला बाघ हत्याकांड के कारण
उन्होने ब्रिटिश सरकार का विरोध करते हुए अपनी नाइटहुड की उपाधि लौटा दी।
रबीन्द्रनाथ ने 1901 ई० मे बंगाल के ग्रमीण क्षेत्र मे 'शांतिनिकेतन' को शिक्षा के उद्देश्य से स्थापित किया।
1921 ई॰ मे उन्होने कृषि अर्थशास्त्री
लियोनार्ड एमहर्स्ट के साथ मिलकर अपनेआश्रम के पास ही ' ग्रामीण पुननिर्माण संस्थान ' की स्थापना की। बाद मे इसका नाम बदलकर ' श्रीनिकेतन ' रखा गया।
भारतीय संस्कृति के अच्छे रुपों का पश्चिमी देशो से परिचय और पश्चिमी देशों की संस्कृति से भारत का परिचय कराने मे टैगोर की बड़ी भुमिका रही।
5. मृत्यु
रबीन्द्र जी जीवन के अन्तिम क्षणों मे बहोत बिमार रहने लगे और जब भी स्वस्थ होते थे तो वे लेखन किया करते थे।परंतु लम्बे समय से अस्पताल मे इलाज चलने के बावजूद 7 अगस्त 1941 ई॰ मे ब्रिटिश भारत के कलकत्ता मे रबीन्द्रनाथ टैगोर जी का देहांत हो गया।
5. मृत्यु
रबीन्द्र जी जीवन के अन्तिम क्षणों मे बहोत बिमार रहने लगे और जब भी स्वस्थ होते थे तो वे लेखन किया करते थे।परंतु लम्बे समय से अस्पताल मे इलाज चलने के बावजूद 7 अगस्त 1941 ई॰ मे ब्रिटिश भारत के कलकत्ता मे रबीन्द्रनाथ टैगोर जी का देहांत हो गया।
अन्त में, चंद महत्वपुर्ण शब्द
प्रिय पाठक ,इस वर्ष 7 मई 2020 को
रबीन्द्रनाथ टैगोर की 159वीं जयंती हर जगह
मनायी गई और उन्हे याद किया गया। परंतु दोस्तो
हमे सिर्फ उन्हे याद करना ही काफी नही होगा
बल्कि हम सब को उनके जीवन की करुणता और
उच्च आदर्शो को अपनाने का प्रण लेना चाहिए
जिससे की हमारा जीवन दूसरो की सेवा के लिये सदैव ही उपलब्ध हो।
प्रिय पाठक,Knowledge(ज्ञान) A...
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इस प्रकार की महत्वपुर्ण जानकारी मिलती
रहेगी और आगे भी मनोरम कहानियां,महान
व्यक्तित्व,महत्वपुर्ण वचन-वाक्य,आत्मोन्नति
आदि बहोत कुछ पर लेख प्रकाशित होती रहेगी।
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